मैंने एक नेता से पूछा
डाक्टर साहब कैसे हो
तोंद बढती ही जा रही है
आदमी हो या भैंसे हो
सुनते ही नेता अकड़ गया
पारा सातवें आसमान पर चढ गया
बोला तूमने तो मेरी इज्जत का किला ही ढह दिया
एक अनपढ अंगूठा छाप को डाक्टर कैसे कह दिया
मैंने कहा नेताजी गुस्से को खत्म करो
कुछ तो समझने का प्रयत्न करो
डाक्टर कहकर तो मैंने तुम्हारी कीमत चढा दी
समाज में ओर भी इज्जत बढा दी
वह बोला रसिक भाई
लगता है तुम्हारी बुद्धि हो गई है जाम
भला एक नेता का इज्जत से क्या काम
राजनीति के इस अखाड़े में
एक आध व्यक्ति ही सच्चा है
इसलिए यदि इज्जत की बात को
भूल ही जाओ तो अच्छा है
ओर सीधे सीधे ये बताओ
कि भले ही तू कवि है
ओर समाज में तेरी भी मेरी तरह
अच्छी छवि है
ओर आपको है कुछ भी कहने की आजादी
लेकिन क्या सोचकर दे दी
मुझ जैसे अनपढ गंवार को डाक्टर की उपाधि
मैंने कहा नेताजी आप पांच साल तक
कुर्सी का मजा लेते रहे
ओर जनता को वायदों की गोली देते रहे
मीठी मीठी गोली वो भी बिना पैसे
इसीलिए आप मुझे दिखाई दिए
सरकारी डाक्टर के जैसे
मैं तो कवि हूँ कवि ही रहूँगा
लेकिन जब तक आप वायदे पूरे नहीं करेंगे
आपको डाक्टर ही कहूँगा
आपको डाक्टर ही कहूँगा
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