Tuesday, August 11, 2009

हिन्दी पखवाड़ा

चले गये अंग्रेज यहां से, अग्रेजी को छोड़ गए,
लाखो वर्षो की संस्कृति, कुछ वर्षो में मोड़ गए,
हिन्दी को तो भूला रहे, अग्रेजी पीठ पर लादी है,
भाषा की जब रही गुलामी, कैसे कहे आजादी है,
गुलामी की जंजिरों को, सही अर्थो मे तोड़ दिखाओं,
पखवाड़े से कुछ ना होगा, हिन्दी पूरे वर्ष मनाओ,

देश गुलामी के कारणो मे, भाषा भी एक कारण है,
स्वभाषा को अपनाना ही, इसका सही निवारण है,
गैरो के जो चाटे तलवे, मिटटी में मिल जाता है,
मान न दे जो निजभाषा को, वो मूर्ख कहलाता है,
हिन्दी अपने देश का गौरव, इसको पूरा मान दिलाओ,
पखवाड़े से कुछ ना होगा, हिन्दी पूरे वर्ष मनाओ,

अंग्रेजी में एक ही SUN है, हिन्दी सौ सौ सूर्य उगाती,
फिर भी जनता इस हिन्दी को, अपनाने में क्यों सकुचाती,
भाषाएं तो सारी सुन्दर, हिन्दी सबकी रानी है,
नई नवेली दुल्हन नहीं ये, वर्षो वर्ष पुरानी है,
हिन्दी से है शान राष्ट्र की, जन जन में इसकों फैलाओं,
पखवाड़े से कुछ ना होगा, हिन्दी पूरे वर्ष मनाओ,

देखे तो पखवाड़े भीतर नये – नये, गुल क्या खिंल जाएंगे,
क्या उददेश्य हिन्दी के इतनी, आसानी से मिल जाएंगे,
अंग्रेजी का कभी-किसी ने, पखवाड़ा मनते देखा है,
हिन्दी के आगे ये कैसी, खिंची हुई लक्ष्मण रेखा है,
हिन्दी के आगे से अब ये, लक्ष्मण रेखा दूर हटाओ,
पखवाड़े से कुछ ना होगा, हिन्दी पूरे वर्ष मनाओ,

भूल ना जाए जिन चीजों को, उनका ही मनता पखवाड़ा,
दक्षिण भारत में खूद हिन्दी, राजनीति का बना अखाड़ा,
जब सरकार चाहेगी मन से, तो ये मुश्किल काम नही है,
पुण्य काम है ये तो ऐसा, जिसका कि कोई दाम नही है,
हिन्दी अपनी पावन गंगा, सब मिल गोता खूब लगाओ,
पखवाड़े से कुछ ना होगा, हिन्दी पूरे वर्ष मनाओ,

ना जाने भारत में अपने, हिन्दी नव सम्वत कब आता,
कितने है अंजान कि हमको, यह पता भी चल नही पाता,
लेकिन न्यू इयर की तैयारी, हफ्तों पहले हो जाती है,
इसलिए तो हिन्दी अपने , देश में खुद ही खो जाती है,
हिन्दी को अपना कर के तुम, स्वाभिमान से शीश उठाओ,
पखवाड़े से कुछ ना होगा, हिन्दी पूरे वर्ष मनाओ,

आओ हिन्दी को हम पूजें, ये है अपने तीर्थ जैसी,
जो दिल के भीतर से निकले, नही अन्य कोई भी ऐसी,
इस भारत में रह कर के भी, जो ना इसका मान करेगा,
सच मानों ईश्वर भी उसको, नहीं क्षमा का दान करेगा,
पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण, हिन्दी का प्रसार बढाओं,
पखवाड़े से कुछ ना होगा, हिन्दी पूरे वर्ष मनाओ,

पंद्रह दिन तक हम हिन्दी के, प्रयोगों का ढोंग रचाते,
उसके बाद में अपने हाथों, खुद हिन्दी की चिता जलाते,
दिल से हमारे इस अंग्रेजी, का जाने कब भूत भगेगा,
जाने कब हिन्दी के प्रति, दिल में स्वाभिमान जगेगा,
अगर जो अपनाना चाहते हो, दिल से हिन्दी को अपनाओं,
पखवाड़े से कुछ ना होगा, हिन्दी पूरे वर्ष मनाओ,

आप बोलचाल की भाषा, जब बोलो हिन्दी में बोलो,
हिन्दी तो कई गुना है भारी, जब चाहो तराजू में तोलो,
जिंदा पिता को डैड कहे जो, वह संस्कृति नही हमारी,
नत मस्तक हिन्दी के आगे, हमको प्राणों से भी प्यारी,
विरोध करें जो हिन्दी का तो, उसको सूली पर लटकाओ,
पखवाड़े से कुछ ना होगा, हिन्दी पूरे वर्ष मनाओ,

अग्रेजी को छोड दिया तो, क्या फिर बगिया नही खिलेगी,
अग्रेजी को भूल गए तो फिर रोटी नही मिलेगी,
सरकारी जो काम को देखे, तो फिर हमकों लगता ऐसे,
अंग्रेजी को हटा दिया तो, प्राण निकल जाएंगे जैसे,
देश से अग्रेजी भाषा का, मिलकर अब तो कलंक मिटाओ,
पखवाड़े से कुछ ना होगा, हिन्दी पूरे वर्ष मनाओ,

हिन्दी है गागर में सागर, जोश नया एक भर देती है,
हिन्दी में शक्ति हैं इतनी, विष को अमृत कत देती है,
हिन्दी ब्रह्मा, हिन्दी विष्णु, हिन्दी ही शिव का त्रिशुल है,
हिन्दी अवतार राम का , कभी ना जाना इसको भूल,
हिन्दी अपनी भारत माता, सब मिल श्रद्धा सुमन चढाओ,
पखवाड़े से कुछ ना होगा, हिन्दी पूरे वर्ष मनाओ

2 comments:

  1. atyant hi samichin rachana hai

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  2. भाई रसिक जी,
    आज से सरकारी कार्यालयों में,’हिंदी पखवाडा’ शुरु हो चुका हॆ.हिंदी के नाम पर पूरे महिने नॊटंकी चलेगी ऒर फिर उसके बाद,साल भर के लिए सब चद्दर तानकर सो जायेंगें.सायें क्यों न? आखिर कुम्भकर्ण के वशंज हॆं.आपने अपनी कविता में सही तस्वीर खींची हॆ.अच्छी रचना के लिए बधाई.
    राजभाषा विकास मंच
    http://www.rajbhashavikasmanch.blogspot.com

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