Tuesday, August 11, 2009

पत्थर

मैं एक पत्थर हूं, मानव जन्म से ही मेरा गहरा नाता है,
और मेरा नाम लेने पर हर कोई थर – थर कांप जाता है
दंगा फसाद हड़ताल में मुझे विशेष इज्जत मिलती है,
और मुझे इस्तेमाल करने से ही दंगाइयों की तबियत खिलती है,

मक्का में शैतान को पत्थर मारने के लिए,
सारी दुनिया से, लाखों लोग, करोड़ों खर्च करके आते है,
और मेरे माध्यम से सदियों पुरानी परम्परा निभाते है,
विश्व का आठवां आश्चर्य, जिस पर दुनिया करती है नाज,
मेरा ही मार्बल का रुप, तराश दिया तो दूध में नहाया हुआ ताज,

हसीनाएं कहती है कोई पत्थर से ना मारे मेरे दिवाने को,
क्या मै रह गया हूँ सिर्फ मजनुओं का खून बहाने को,
मुझे इस्तेमाल करों सिर्फ मानवता के लिए,
जैसे सर छुपाने को, कोई घर बनाने को,

सुना है कि जब किसी की अक्ल पर, पत्थर पड़ जाते है,
तो उनमें से कुछ नेता तो कुछ मंत्री बन जाते है,
मानव वैज्ञानिक बनकर चांद तक भी होकर आया है,
लेकिन वहां से भी सिर्फ मेरे ही, कुछ नमूने लाया है
मैं तुच्छ होते हुए भी नदी के प्रचंड बेग का मुकाबला कर लेता हूँ,
और कई बार तो घिस – घिस कर स्वयं ही शिवलिंग का रुप धर लेता हूँ,
मै कितनी ही बार किसी शिल्पी के प्रेम में वशीभूत होकर,
उसकी छैनी हथौड़ी की मार सह जाता हूँ,
और एक मूर्ति के रुप में प्रकट होकर,
किसी देव की अनकही कहानी कह जाता हूँ,

मै किसी बड़े से बड़े शीशे के घमंड को,
अपने छोटे से टुकड़े द्वारा पल भर में चूर कर सकता हूँ
और कभी ग्रेनाइट पालिश द्वारा,
खुद शीशे का रुप धर सकता हूँ

जिस प्रकार घर बनाने वाले खुद बेघर हो जाते है,
लेकिन उन घरों के नीचे उनका खून पसीना गड़ा होता है,
उसी प्रकार नींव का पत्थर खुद नजर नही आता,
लेकिन पूरा भवन उसी नींव के पत्थर पर खड़ा होता है,

चाहे कितनी ही ढलान हो मै बस, ट्रक, कार कई ओट बन जाता हूँ,
और अपनी छाती पर टनों वजन हंसतें – हंसतें, सह जाता हूँ,
इतना करने पर भी मानव तुम ना जाने किस हवा में बहते हो,
मेरा कलेजा तो तब फटता है, जब तुम किसी को पत्थर दिल इंसान कहते हो,

जब कोई मुझे राह में फेंक दे, तो भी ठोकर खाने वाला मुझे ही गालियाँ देता है,
लेकिन पत्थर होते हुए भी मेरा दिल, इंसान की तरह किसी से बदला नही लेता है,
कुछ ऐसे भी है जो ठोकर खाकर, मुझे वही छोड़, बार – बार ठोकर खाते है,
ऐसे इंसान जीवन में सिर्फ हाथ मलकर रह जाते है,

राह में यूं पत्थर छोड़ जाने के पीछे कोई तर्क होना चाहिए,
अरे इंसान और जानवर में कुछ तो फर्क होना चाहिए,
जब कोई सड़क बनाने वाला मुझ पर हथौड़ा बजाता है चोट करता है,
मै तब भी अपना धर्म नही छोड़ता,
खुद टूट जाता हूँ, लेकिन तोड़ने वाले का दिल नही तोड़ता,

पत्थरों के बिना नल-नील लंका जाने के लिए पुल कैसे बनाते,
और बिना पुल बने श्रीराम लंका पर विजय की खुशी कैसे मनाते,
इसी प्रकार जब कोई अनोखा काम करके दिखाता है,
तो वो मील्का पत्थर कहलाता है ॥

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