Tuesday, August 11, 2009

मोबाइल

मोबाइल वो डिबिया है संदेश जहां पर आते है
उसको संग में रखने वाले मान यहाँ पर पाते है
राज छिपाने की खातिर ये बनी आज मजबूरी है
इस मोबाइल के कारण ही घटती जाती दूरी है
पूरे विश्व के जिस कोने में भी अब मानव जाता है
एक यही मोबाइल है जो उसे ढूंढ दिखलाता है
बाथरुम तक जा पहुँचा है मोबाइल केक्या कहने
इसके आगे सब फीके है चांदी सोने के गहने
उस मोबाइल के रखने को मेरा दिल भी करता है
लेकिन दिल तो मोबाइल के बिल से केवल डरता है
बिन मोबाइल लगता जैसे जीवन सूनी फाइल है
रिक्शा वाला घूम रहा है लेकर आज मोबाइल है
जब भी कोई किसी बैंक में ॠण लेने को आता है
सबसे पहले मोबाइल का नम्बर पूछा जाता है
जो ना हो मोबाइल नम्बर धक्के मारे जाते है
लौट के बुद्ध बिना काम ही वापस घर को आते है
मोबाइल रखने वाले झूठा भी सच्चा होता है
मोबाइल वाले कवियों का दर्जा ही उठ जाता है
छोटे – मोटे कवि सम्मेलन में जाना छूट जाता है
मै भी तो लालायित हूँ मोबाइल अमृत पीने को
मुझको भी चाहिए मोबाइल शीश उठाकर जीने को
मोबाइल वाले चेहरों पर फैली आज स्माईल है
रिक्शा वाला घूम रहा है लेकर आज मोबाइल है॥

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