Tuesday, August 11, 2009

गांधी

जिधर भी देखो हिंसा—हिंसा, हिंसा की चली है आंधी,
लेकर के अवतार धरा पर, आ जा रे तू फिर से गांधी,
पूर्व हिंसा पश्चिम हिंसा, उतार हिंसा, दक्षिण हिंसा,
बाकी तो सब कुछ है, मंहगा, सस्ता केवल हुआ है इंसा,

हिंसा के इस दौर में बापू बोलो हम कैसे जी पाए,
दूजा गाल तो कर दें आगे, तीजा फिर कहां से लाएं,
भ्रष्टाचार की जड़े है गहरी, अपराधियों की हुई है चांदी
लेकर के अवतार धरा पर, आ जा रे तू फिर से गांधी,

मानव आज मशीन बना है, नक्शा बदल गया है घर का,
केवल संग्रहालय की शोभा, अब तेरे भारत में चरखा,
सोने चांदी के सिक्कों में, मानवता तोली जाती है,
अब तो केवल गोलियों वाली, भाषा ही बोली जाती है,
गांधी तेरा भारत छोड़ो, याद हमें है मार्च डांडी,
लेकर के अवतार धरा पर, आ जा रे तू फिर से गांधी ।।

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